तुम्हारे चले जाने पर फर्श पर पड़ी कैरम की गोटी और कोने में पड़ा लूडो भी रोयेगा

>> 26 February 2009

पता है भईया आज मेरी गुडिया मुझसे बात कर रही थी .....अच्छा , अरे वाह तुम्हारी गुडिया तुमसे बात भी करती है .....हाँ बात करती है ....अच्छा क्या कहती है तुम्हारी गुडिया ....मेरी गुडिया कहती है कि तुम्हारे भईया कितने अच्छे हैं ...तुम्हे टॉफी लाकर देते हैं ..अपनी बहन की इन मासूम सी बातों पर मैं मुस्कुरा देता ...अच्छा तो भाई को उल्लू बनाया जा रहा है ...सीधे बोलो न टॉफी चाहिए ...आ - आ मुंह पर हाँथ रखते हुए बोलती ....आपको भी कोई उल्लू बना सकता है क्या ...आप तो कितने अच्छे हैं ....अच्छा बाबा मैं शाम को टॉफी ले आऊंगा ....और मेरी प्यारी बहन मेरे गले में हाँथ डाल ख़ुशी से झूल जाती

और जब जब रक्षाबंधन या भैया दूज आता तब तब वो और ज्यादा खुश होती ....किसी की मजाल है कि दो भाईयों की इस बहन को कोई कुछ कह दे ....पूरा दिन सुबह से ही ख़ुशी ख़ुशी पूरे घर में चहल कदमी करती रहती ....मुझे अच्छी तरह याद है ...पापा से लिये हुए १० रुपये जब उसके हाथ में देता तो वो कितना खुश होती थी ....और पापा से अलग से कपडे मिलते सो अलग .....वो बहुत खुश होती कि ये उसका दिन है

और हम दोनों भाई पूरी कॉलोनी में अपनी बहन की बाँधी हुई राखी को सीना चौडा करके दिखाते थे .....और इस बात से खुश होते कि हमारी भी बहन है .... पास के ही रहने वाले बिट्टू को हम उस दिन उदास देखते थे .... बहन के होने पर हमें गर्व महसूस होता ....

वक़्त कब बीत जाता है पता ही नहीं चलता ....पिछले छः साल घर से बाहर ही बिता दिये .. ...ठीक से उसकी शरारत , उसकी जिद , उसका भोलापन देख ही नहीं सका ....कब बड़ी हो गयी पता ही नहीं चला ...
आज भी चाहे जो हो जाये रक्षाबंधन और भैया दूज पर उसके सामने होता हूँ ....जानता हूँ न पहुँच सका तो रो रोकर बुरा हाल कर लेगी ...आखिर हम सबकी लाडली जो है

बचपन में पूँछा करती ...भईया टीचर बनना अच्छा है या डॉक्टर ...मैं कहता दोनों ...दोनों ही लोगों को कुछ ना कुछ देते हैं ....बोलती ...नहीं भईया मैं तो टीचर ही बनूँगी ...हाथ में छड़ी लेकर बच्चो को पढाया करुँगी ....मैं मुस्कुरा देता ...अच्छा ठीक है टीचर बन जाना ....

वो बचपन बीता ...कल का समय बदल कर आज का समय बन गया ... अब डरता हूँ खुद मैं ...कुछ साल बाद जब वो शादी कर चली जायेगी तब ना तो कोई जिद करेगा ...न उल्लू बनाकर अपनी बात पूरी कराएगा ...और ना ही बेझिझक अपने मन की बात कह देने वाली मेरे पास होगी ..तब हर वो जगह, वो कोना , वो कमरा ....वो आंगन ...वो बातें सब उसकी याद दिला दिला कर रुला जाया करेंगी . ....

और मैं कहीं किसी कोने में रो दिया करूँगा ...फिर फ़ोन पर बात कर दिल को हल्का कर लेने पर भी ...उसके फ़ोन रखते ही उसकी हर बात याद आ जाया करेगी .....
वो फर्श पर पड़ी कैरम की गोटी और लूडो पड़ा कहीं रोयेगा
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पिछला लेख : आओ जाने मोहब्बत में ऐसा भी होता है

21 comments:

कुश 26 February 2009 at 11:47  

बेटिया कितनी जल्दी बड़ी हो जाती है न!

अभिषेक मिश्र 26 February 2009 at 12:03  

निश्चित रूप से आप अपनों के दिल में ही रहते होंगे.

दिगम्बर नासवा 26 February 2009 at 12:58  

आपका कहना ठीक है...........बचपन और ख़ास कर भाई बहनों का प्यार हमेशा याद रहता है

डॉ .अनुराग 26 February 2009 at 13:59  

सच बात कहने के लिए किसी हुनर की जरुरत नहीं ......देखो तुमने दिल उडेल दिया ओर हम भी भीग गये

hem pandey 26 February 2009 at 15:06  

भाई बहन के पवित्र रिश्ते की झलक देखने को मिली. मन को छूती अभिव्यक्ति.

Asha Joglekar 26 February 2009 at 15:19  

और मै सोचती थी सिर्फ बहनें ही भावुक होती हैं । भिगो दिया सही में ।

संगीता पुरी 26 February 2009 at 16:08  

मन को छूती हुई रचना ... सच कितना पवित्र होता है यह भाई बहन के रिश्‍ते ।

जगदीश त्रिपाठी 26 February 2009 at 16:49  

भाई-बहिन का रिश्ता, इस दुनिया में सबसे प्यारा रिश्ता है.बेहतर अभिव्यक्ति.

शोभा 26 February 2009 at 17:04  

बहुत सुन्दर लिखा है। बधाई।

रंजना 26 February 2009 at 18:21  

आपने तो सचमुच रुला दिया......

Archana Chaoji 26 February 2009 at 18:33  

बहुत ही अच्छा लिखा है,भाई-बहन का प्यार होता ही ऎसा है।अच्छी और मीठी यादे अकेले मे आपको हँसा भी देंगी दुःखी न हो।

रंजू भाटिया 26 February 2009 at 19:06  

यह रिश्ता इतना ही भावुक और प्यारा होता है ..बहुत सुन्दर लिखा आपने आँखे गीली हो गयी ..

रश्मि प्रभा... 26 February 2009 at 21:27  

आपकी अधिकाँश रचना घर के आँगन तक ले जाती है,और मन जाने कहाँ खो जाता है,.......पर सच है,घर की सोंधी याद आती है

Anonymous,  26 February 2009 at 21:59  

Jo aapne likha hai use mahsoos kiya ja sakta hai.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` 27 February 2009 at 02:34  

"फूलोँ का तारोँ का सबका कहना है, १ हज़ारोँ मेँ मेरी बहना है "
बहन और भाई का प्यार जब तक ऐसा पावन रहेगा
ईश्वर की बसाई धरती पर पुण्य बसा रहेगा
स्नेह सहित
- लावण्या

Tarun 27 February 2009 at 07:10  

Anil, bahut sundar likha hai, aisi hi khatti mitthi yaadon ka bachpan aaj phir yaad aa gaya. Shukriya

Sudhir (सुधीर) 27 February 2009 at 09:49  

बहुत सुंदर लिखा .... आपने भावुक कर दिया

Puja Upadhyay 27 February 2009 at 17:18  

भावभीनी यादें हैं...अच्छा लगा पढ़ कर

दर्पण साह 27 February 2009 at 19:34  

yaar is se bada dard to aur koi ho nahi sakta. Ya agar ho sakta hai to abhi tak to maine yahi sabse bada mehsoos kiya hai.
20th feb ko hi meri behan ki shaadi hui hai...
Chalo Sukh ke bhesh main dukh aur dukh ke bhesh main sukh aata hai...

-------------------Accha lekh-----------------
--------------------Badhai-------------------

mohitka 10 September 2009 at 15:57  

itna achaa aur itna touching likhte ho ki kahi-2 ankehin bhar hi aati hai. Lagta hai jasie ya to mere sath hi ho raha hai ya mai in sabko khud dekh rahi hu....

Kamal ho bhai...

maine aaj tak kisi bhi IT Professional ko is tarah likhte hue nahi dekha...

Heartiest Congratulations........

Monika Gupta
monika.gupta@samsung.com

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