ट्रेन वाली लड़की (भाग-1)

>> 11 February 2009

कभी कभी कुछ इत्तेफाक़ ऐसे होते हैं जो पहले कहानी बनते हैं और फिर रह जाते हैं तो बस याद बनकर । एक याद जो आज भी मेरे जहन में है । सोचता हूँ कि उतार दूँ जिंदगी के पन्नो पर । लेकिन चाह कर भी हम जैसा चाहते हैं, वैसा कहाँ हो पता है ।

ऐसा ही इत्तेफाक उस रोज़ हुआ । मैं जिस सोफ्टवेयर कम्पनी में काम करता था । उस कम्पनी के प्रोजेक्ट के सिलसिले में हैदराबाद जाना हुआ । प्रोजेक्ट का काम एक हफ्ते में समाप्त कर वापस लौटना था । हैदराबाद से दिल्ली के लिए मेरा आरक्षण था ।

आप जब कभी जल्दी में हो तो अक्सर लेट हो जाते हैं । वजह बहुत सारी होती हैं । कभी कुछ तो कभी कुछ । मैं ट्रेन के छूटने से ठीक चन्द पल पहले रेलवे स्टेशन पर पहुँचा । गाड़ी चल दी थी, मैं भागता हुआ ट्रेन में चढ़ गया।

कुछ मुलाकाते बहुत प्यारी होती हैं । जो दिल में घर कर जाती हैं और बस जाती हैं एक सुनहरी याद बनकर । ये मेरी किस्मत थी या कुछ और, नही जानता । मेरे सामने की सीट पर एक करीब 25-26 वर्षीय खूबसूरत लड़की अपना सामान सीट के नीचे रख रही थी । मैं अपनी सीट पर जाकर बैठ जाता हूँ । ऊपर की दोनों ओर की दोनों सीटें खाली पड़ी थी । ना जाने क्यों, नज़र लड़की के चेहरे पर जाती है, लड़की खूबसूरत थी ।

रात का समय होने के कारण सब सोने की तैयारी कर रहे थे । सभी अपनी-अपनी सीट पर लेट रहे थे । "क्या मैं लाईट बंद कर दूँ ? सोने का समय हो गया है । अगर आप बुरा न माने तो ।" लड़की बोली "जी बिल्कुल, शौक से बंद कर दीजिये" मैंने कहा । थैंक यू कहते हुए लड़की ने लाईट बंद कर चादर ओढ़ कर सोने की कोशिश की । दिल में ख़याल आया जब चाँद ही छुप गया तो अब जागने से क्या फायदा ।

मैं सुबह 7 बजे उठा, देखा कि लड़की के चेहरे पर फूलों की सी ताज़गी और खूबसूरती विराजमान थी । उसे देख दिल खुश हो गया । मैं भी नित्य क्रियाएं कर आकर सीट पर बैठ गया । अब मैं कभी लड़की को देखता तो कभी खिड़की के बाहर । थोडी देर बाद चाय वाला आता है । चाय -चाय -चाय ।

"दोस्त एक चाय देना" मैंने उसको बोला । चाय का गिलास हाथ में पकड़ दूसरे हाथ से पर्स निकाल कर जब देखा तो उसमे सब पाँच सौ के नोट थे । मैं भूल ही गया था कि सारे छुट्टे ख़त्म हो चुके हैं । मैंने मुस्कुराते हुए 500 का नोट चाय वाले को दिया । "क्या साहब सुबह सुबह मजाक कर रहे हैं आप" चाय वाला बोला ।

"दोस्त खुले पैसे तो नही हैं" मैंने उससे कहा । "देख लो साहब किसी से ले लो खुले" चाय वाला बोला
"अब किस से माँगू यार ।" आपके पास हैं मैडम 5०० के खुले, सामने सीट पर बैठी लड़की से मैंने पूँछा । "नही 5०० के खुले तो नही हैं ।" लड़की मुस्कुराती हुई बोली ।

"ठीक है दोस्त तुम ये चाय वापस ले लो अपनी । मैं अगले स्टेशन पर कुछ इंतजाम कर लूँगा । मैंने उसको बोला । "आप चाय पी लीजिये मैं पैसे दिए देती हूँ । आप खुले होने पर वापस कर देना ।" लड़की बोली
मैंने कहा "शुक्रिया"
और फिर वो एक हिन्दी की कोई किताब खोल कर पढने लगी ।

किताब के बाहरी पृष्ठ पर अनूठी चित्र कला का प्रदर्शन करते हुए कुछ टेडी मेडी सी पुरूष और महिलाओं की आकृतियाँ बनी हुई थी । मैंने कहा "शुक्रिया आपकी वजह से चाय पी रहा हूँ ।" लड़की ने मद्धम मद्धम सी मुस्कान बिखेरी और पुनः पढने लगी । मैंने कहा "आप हिन्दी की किताबें पढने का शौक रखती हैं ।"
"हाँ मुझे हिन्दी की कविता , कहानियाँ, इन सब में बहुत दिलचस्पी है । लड़की ने मेरी ओर देखकर जवाब दिया ।

मैंने कहा "आज के ज़माने में जब सब अंग्रेजी की तरफ़ भाग रहे हैं । आप मुद्दत से मिली हैं जो हिन्दी का शौक रखती हैं ।" "अरे ऐसा कुछ नही हैं अंग्रेजी में भी पढ़ लेती हूँ पर हिन्दी से मुझे अथाह प्रेम है ।" लड़की बोली
"क्या कहा अथाह प्रेम ? अरे वाह आप तो बहुत ही शुद्ध हिन्दी का प्रयोग करना जानती हैं।" मैंने उसको मुस्कुराते हुए कहा । "बस पढ़ पढ़ कर ही सीखा है । वैसे मुझे हिन्दी बचपन से ही पसंद हैं ।" लड़की बोली
"बहुत खूब आप तो बहुत बड़ी हिन्दी प्रेमी निकली । जब मैंने ये कहा तो वो मुस्कुरा दी ।

"आप सिर्फ़ बातें बनाना ही जानते हैं या बातों के आलावा कुछ और भी करते हैं ।" वो बोली । "करता हूँ ना बातें - बातें और ढेर सारी बातें" मैंने मुस्कुराते हुए कहा । "क्यों आप कोई नेता हैं ? जो सिर्फ़ बातें करना जानते हैं ।" वो प्रतिउत्तर में बोली । उसकी इस बात पर में ज़ोर से हँस दिया ।

"वैसे जो आप पढ़ रही हैं वो काम मैं भी कर सकता हूँ ।" मैं बोला ।
"क्या किताब पढ़ सकते हैं ?"
"नही मैं लिख सकता हूँ ।"
"अच्छा तो आप लेखक हैं ।" वो बोली

"नही लेखक तो नही लेकिन हाँ कभी कभी लिख लेता हूँ । " मैंने कहा ।
"अच्छा सच में । आप तो बहुत बड़े आदमी निकले ।" लड़की उत्साहित होकर बोली । अब वो मुझ में गहरी रूचि लेने लगी । "तो क्या लिखते हैं आप?" उसने पूँछा । "कुछ नही, शब्दों को आपस में प्यार करना सिखाता हूँ ।" मैंने कहा ।
"क्या मतलब ?" वो बोली ।


"अरे आप नही समझी । अरे यूँ ही जब कभी दिल करता है तो कवितायें लिख लेता हूँ ।
"अरे वाह आप तो बड़े काम के आदमी निकले ।" वो खुश होते हुए बोली ।
"अरे काम का कुछ नही यूँ ही कभी-कभी लिख लेता हूँ ।"
"तो सुनाइये न कुछ अपना लिखा हुआ । उसने कहा । मैं बोला "क्यूँ आपको कवितायें पसंद हैं क्या ?"
"हाँ बहुत ज्यादा, सुनाइये न ।" वो बोली .। मैंने कहा "अच्छा ठीक है सुनाता हूँ । लेकिन आपको एक वादा करना होगा ।"
"क्या ?"
"आपको मुझे चाय पिलानी होगी । अभी तक मेरे पास खुले पैसे नही हैं ।"

वो हँस दी । "हाँ पक्का पिलाऊँगी । "

मैंने अपनी एक कविता सुनाई । उसे पसंद आई । कहने लगी आप तो बहुत अच्छा लिखते हैं । मैंने कहा चलो तारीफ़ झूठी हो या सच्ची । लेकिन अब चाय तो पीने को मिलेगी । वो मुस्कुरा दी । मुस्कुराते हुए बहुत प्यारी लगती थी वो ।

"आप तो अच्छी कवितायें लिख लेते हैं ।"
मैंने कहा "ऐसे काम नही चलेगा । अब चाय पिलाइए ।" वो फिर हँस दी । थोडी देर में हम दोनों ने चाय पी .
"तो आप कब से लिख रहे हैं कवितायें ।" उसने पूंछा । मैंने कहा यही कोई 8-10 साल ।
"अरे वाह बहुत खूब । अच्छा फिर तो काफ़ी कविताएँ एकत्रित हो गई होंगी"
मैंने कहा "बहुत ज्यादा नही हैं मेरे पास । लिख देता हूँ तो गुम हो जाती हैं । फिर भी 25-30 हैं मेरी डायरी में ।" "अरे वाह दिखाइये ना । वो उत्साहित सुर में बोली । कुछ पढने के बाद बोली "आपकी कविताओं में तो प्रेम की गहराई छुपी हुई है । आप सिर्फ़ प्रेम पर आधारित कवितायें ही लिखते हैं क्या ?"
मैंने कहा नही ऐसा कुछ नही जब मन में जैसे विचार आ जायें ।

"आपकी कविताओं से साफ़ पता चलता है कि आप कितने रसिक हैं ।" लड़की मुस्कुराते हुए बोली ।
"अरे ऐसा कुछ नही है बस लिख लेता हूँ ।" मैंने कहा ।
"प्रेम की वेदना तो बस एक प्रेमी समझ सकता है । कहीं इश्क विश्क इसकी वजह तो नही । उसी के बाद ये शुरू किया हो ।" उसने सवाल के अंदाज़ में कहा ।

"क्यों सिर्फ़ प्यार करने वाला ही प्यार को समझ सकता है क्या ? कवि का तो काम ही है एहसास को शब्दों का सहारा लेकर कविता में उतारना । " मैंने उससे कहा
"इसका मतलब आपको कभी प्यार नही हुआ ?" उसने बोला ।
"सच सुनना चाहेंगी या झूठ" मैंने बोला । "वो बोली दोनों सुना दीजिये ।"
"तो सच और झूठ दोनों यही हैं कि मेरे कई इश्क चले । कई लड़कियों ने मुझसे इश्क किया और दिल भर जाने पर या परेशानी आने पर उनके रास्ते बदल गए । मैं अपने रास्ते बढ़ता रहा ।

"यह सच है या झूठ ।" लड़की बोली ।
"यही हकीक़त है मेरी अब आप चाहे सच माने या झूठ ।" मैंने कहा
"तो कितनी लडकियां प्यार कर चुकी हैं आपसे ।" लड़की मुस्कुराते हुए बोली ।
"यही होंगी कोई 4-5" मैंने हँसते हुए बोला ।
"बहुत समय था आपके पास इन सबके लिये ।" लड़की बोली ।
"बस यूँ समझ लीजिये समय फालतू था मेरे पास । इन सब में खर्च कर दिया । सब अपने आप होता गया ।"

"बहुत खूब , जानकर खुशी हुई ।" वो बोली
"क्या जानकर ?" मैंने कहा
"यही कि आप सच भी बोल लेते हैं इतना दिल खोलकर ।"
इतनी देर में अगला स्टेशन आ जाता है । मैं बाहर जाकर कुछ खाने पीने का सामान खरीद कर लाता हूँ । 500 के खुले जो कराने थे । वापस आकर मैंने उसे उसके पैसे देने चाहे । वो बोली "नही अब आपकी बारी है अब आप मुझे चाय पिलायेंगे।" फिर चाय वाले के आने पर हम लोगों ने चाय के साथ नमकीन और बिस्कुट भी खाए।

"आप करते क्या हैं ?" उसने पूँछा
"मैं एक सोफ्टवेयर इंजीनियर हूँ और प्रोजेक्ट के सिलसिले में यहाँ आया था ।"
" एक बात जो मैं जरूर जानना चाहूँगा ।" मैंने उसको बोला
"क्या ?"
"आपका नाम क्या है ?"
उसने मुस्कुराते हुए कहा नम्रता और मैं एक असिस्टेंट बैंक मैनेजर हूँ । काम के सिलसिले में हैदराबाद आयी थी । मैंने अपना नाम बताते हुए उससे पूँछा "आप कहाँ नौकरी करती हैं ।"
"भोपाल में ।" जवाब दिया ।

"तो मैं एक बैंक मैनेजर के सामने बैठा हूँ ।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा ।
नम्रता हँसने लगी । बोली "बातें बनाना तो आपको बहुत आती हैं । अच्छा तो आप कब कविता लिखते हैं ।
मैंने कहा "जब भी मेरा मन करता है तब लिख देता हूँ ।"

मैंने कहा "वैसे मैं अभी भी कविता लिख सकता हूँ । आप सामने होंगी तो तो कविता अपने आप बन पड़ेगी ।
वो बोली "अच्छा ये बात भी है । ज़रा हम भी तो देखें आपका जादू ।"
कुछ देर में उसके सामने बैठ उसको निहारते हुए एक कविता लिख डाली ।
"लिखी कि नही । पूरी हुई या अभी नही ।" वो बोली
"हाँ बस हो गई ।"
"अच्छा अब सुनाओ ।"
मैंने उसे कविता सुनाई । वो बहुत खुश हुई । कहने लगी इस कदर मैंने अपनी तारीफ़ पहले कभी नही सुनी । क्या मैं ये कविता रख सकती हूँ ?"
मैंने कहा "हाँ बिल्कुल क्यों नही । ये तो आपके लिए ही लिखी है मैंने ।"

पता नही क्यों पर वो इस कदर खुश थी । जैसे कि बहुत कुछ कह दिया हो कविता में मैंने । बिना जाने सब कुछ जान लिया हो । वो बोली "मैं तो आपकी प्रशंसक बन गई । क्या आप मुझे अपनी कवितायें देंगे ।"
"क्यों आप क्या करेंगी उनका ?" मैंने पूँछा ।
"अपने पास रखूँगी । एक प्रशंसक का इतना हक़ तो बनता ही है ।
मैं मुस्कुरा दिया "अच्छा प्रशंसक महोदया । आपकी बात तो माननी पड़ेगी ।"
मैंने उसे अपनी डायरी से देख कई सारी कवितायें दूसरे पन्नो पर लिख कर दी ।
वो बोली "आपका ऑटोग्राफ वो भी चाहिए । आप अपना पता भी लिख देना और फ़ोन नंबर भी । अगर प्रशंसक का दिल करे तो चिट्ठी पत्री लिख सके ।
मैं मुस्कुरा दिया । मैंने उसे लिख कर दे दिया । वो सभी कवितायें अपने सूटकेस में रख लेती है । बातों का सिलसिला चलता रहा । नम्रता बहुत खुले दिल की और बहुत समझदार लड़की थी । भोपाल तक का सफर कैसे बीत गया पता ही नही चला । भोपाल पहुँचने पर वो अपना सूटकेस निकालती है फिर अपना हाथ बढाते हुए बोली कुछ नही तो कम से कम हम दोस्त तो बन ही सकते हैं । मैंने हाथ मिलाया ।
"चलो मैं आपको बाहर तक छोड़ देता हूँ"
बाहर जाकर बोली "मुझे पता है कि आप यही सोच रहे होंगे कि मुझसे तो सब कुछ ले लिया और ख़ुद अपना नंबर तक नही दिया ।" मैंने कहा "नही ऐसा कुछ नही है ।"
"अब हम दोस्त तो बन ही गए हैं और आपकी ये प्रशंसक समय मिलने पर आपको फ़ोन जरूर करेगी ।"
उसके बाद नम्रता अलविदा कहते हुए मुस्कुराती हुई चली गई । बाद का सफर मैंने सोते हुए गुज़ारा ।

कुछ दिन तक तो याद रहा वो सब । फिर एक महीने तक ना कोई फ़ोन, ना कोई पत्र । मैं भूल ही गया था सब कुछ । फिर एक दिन उसका फ़ोन आया ।
अनजान नंबर से फ़ोन । कौन हो सकता है ? यही सोच मैंने फ़ोन उठाया...

आगे की कहानी के लिंक ये हैं :
दूसरा भाग
और
अंतिम भाग

21 comments:

Anil Pusadkar 11 February 2009 at 17:27  

वाह हिरो अच्छा झटका दे दिया,अब इंतज़ार करवाओगे।बहुत खूब लिखा कही भी भटकने नही दिया।

रंजू भाटिया 11 February 2009 at 17:32  

यूँ ही चलते चलते कोई मिल गया था :) चलिए जल्दी से आगे का हाल सुनाये

इष्ट देव सांकृत्यायन 11 February 2009 at 17:50  

अरे भाई! अब फोन के बाद वाली बात बताइए. इंतज़ार रहेगा.

Smart Indian 11 February 2009 at 17:53  

वह बोली, "हिन्दी से मुझे अथाह प्रेम है"
"अरे!" मैंने अचम्भे से कहा, "मेरा नाम आपको कैसे पता चला?"
अगली कड़ी कहाँ है भैया? जल्दी लिखो.

सुशील छौक्कर 11 February 2009 at 18:02  

पहले तो ये बताओ जी ये जारी है या यही खत्म। एक सांस में ही पढ गया। पहली बार आना हुआ और आकर अच्छा लगा। यूँ ही टेन में चलते रहिए और हमें ऐसे ही पढाते रहिए सुन्दर इत्तफाक।

अभिषेक आर्जव 11 February 2009 at 19:28  

. ... छा तो आप गए गुरु ! , इतना दुर्दांत लेखन ! कुछ और काम धाम नहीं है क्या !

Sunil Bhaskar 11 February 2009 at 19:44  

गज़ब लिखा है गुरु .....छा गए ...तुम्हारी पोस्टों का तो मैं फैन बन गया ...

Pragati Mehta 11 February 2009 at 20:54  

bahut khub mere bhai.main bhi apka prashansak ban gaya...Jai Ho...

योगेन्द्र मौदगिल 11 February 2009 at 21:24  

बढ़िया लगा......... अब आगे...?

PD 12 February 2009 at 01:45  

sahi guru... jhakas likhe ho.. :)
agla part kab aa raha hai??

अनिल कान्त 12 February 2009 at 10:53  

आप सब का पढने और टिप्पणी करने के लिए शुक्रिया .....
बहुत जल्द ही में अगला भाग लेकर आप सब के सामने प्रस्तुत होऊँगा

Puja Upadhyay 12 February 2009 at 12:57  

बहुत अच्छा फ्लो था, कहीं भी भटकने नहीं दिया...एकदम डोर पकड़े चलते रहे...अगले पार्ट के बारे में उत्सुकता बढ़ गई है...जल्दी लिखना. वैसे कविता लिखने के बारे में आपके शब्द बड़े खूस्रूरत लगे" मैं शब्दों को आपस में प्यार करना सिखाता हूँ", कविता की बहुत सी परिभाषाएं पढ़ी हैं पर ऐसी अनूठी कभी नहीं पढ़ी. कहीं कोट कर सकती हूँ न?

अनिल कान्त 12 February 2009 at 18:04  

कमेन्ट के लिए शुक्रिया ...अरे जी बिल्कुल कर सकती हैं पूजा जी

Rahul Pathak 12 February 2009 at 18:24  

लड़की को प्यार नहीं था ... (आप ही ने लिखा है की लड़की समझदार थी...)
But तुम्हारा दिल फिसल गया है बेटा ....

एक शेर तुम्हारे लिए... गौर फरमाइए ...
१) इश्क की रह में हर बरस लगते हैं मेले...
सबको महबूबा मिली और तुम रह गए अकेले !!

और एक गीदर उस लड़की के लिए...
२) ये तेरा चेहरा है या केले का छिलका... साला, देखते ही दिल फिसल गया !!!

थोडा संभल के भाई मेरे .... अबकी Flight में सफ़र करना और फिर अगला Post लिखना..God Bless U

अनिल कान्त 12 February 2009 at 18:41  

भैया आर्थिक मंदी के इस दौर में flight में सफर कैसे कर सकता हूँ ....भविष्य की तो सोचनी पड़ेगी ना

Rahul Pathak 12 February 2009 at 19:12  

News सुना करो... Flight की Ticket सस्ती हो गई है Base Fare 99/- से शुरू होता है वैसे भी तुम Software Engineer हो, प्यार पाने के लिए इतना Afford कर ही सकते हो !

अनिल कान्त 12 February 2009 at 19:27  

भाई flight में तो ठीक से बात करने का टाइम भी नही मिलेगा .....बस बैठे और उतरो .....और टीवी नही है तो न्यूज़ कहाँ से सुनूँ दोस्त ... :) :)

Anonymous,  12 February 2009 at 23:49  

बढ़िया है भाई.

आप तो हमारे पुराने शहर वाले निकले..

●๋• लविज़ा ●๋•

swarna 21 February 2009 at 23:35  

Hi,

bahut hi sundar rachana....really aapne sabdo ko bahut si sundar dhang se piroya hai.....and unhe mohabaat karna sikhaya hai..

Well cmg to ur story if tht is true then being a gl...i can understand the feelings of Namrata........being gl i will say namrata really loved tht guy...fm heart and truly. BUt u kw indian cultural so always gls hav to scrifice and hav to TC of both the family. Namrata bhi bartiya sanskaro waali ek samajdar ladaki hai....jisane aapne pariwar ke liye apane payaar ki kurbani dedi. But I m sure when a girls says someone tht she loves u or want to spend her life tht means she really.....as a gl only says wt she means and worths. Tht matters a lot. But after happening all this again m sure....ki aaj bhi dil ke kisi koune mai wo sari yaade basi padi hai jo usane samay ke saath samjota kar ke daba di hia. Well i will also like to comment abt the guy as per i understan the guy is quite mature and hav no feelings for namrata in the way she had.........but he just liked namrata as a gut person and frd....so with tht he had no prob to see namarata as her life partner.

But I m very sad for namrata i wish today she be very happy with her life as expect tht i don't hav nthg...but i don't kw when our parents will understand ki baccho ki khushi se jayada kuch nahi hota and y thy mak thr children to sacrifice thr LOV. At least thy sud meet the guy and analyse whether her decision is right or wrong..................then thy sud decide further........

But i wish at least once i meet NAMRATA........as her pain is similar to me.........but no bdy can understand heart of a gl...a women...........no one...........don't kw y this happens.....will just request young generation ki plz plz plz if sth like this happens with ur own kids then plz plz first meet tht person and then tak further ecision as without knowing a person....to reject tht is wrong at all and also if ur kids accept ur decision and do wt parents wants but if thy r nt happy and makg just adjustments then wt is the mean to b parents and spoiling two lives................????????????

swarna bansal

Anonymous,  13 August 2010 at 12:43  

bahut hi sundar...
acha laga pad kar....

Meri Nayi Kavita par aapke Comments ka intzar rahega.....

A Silent Silence : Naani ki sunaai wo kahani..

Banned Area News : Witherspoon not ready to wed beau

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