ब्लॉगिंग से संबंधित कुछ ग़लतफ़हमियाँ

>> 04 December 2009

हमारे एक मित्र थे बिल्कुल लखनऊ की नज़ाकत और नफ़ासत लिए हुए. वो अक्सर एक ज़ुमला इस्तेमाल किया करते थे " ये शरीफ़ हैं, इनकी शराफ़त की तो..." अब डैश-डैश पर मत जाइए. उसमें बहुत कुछ छिपा है, अजी मान लीजिए कि बहुत कुछ छिपा रहता है इस डैश-डैश में. मसलन... अजी गोली मारिए मसलन को. आप तो ख़ामाखाँ हमें पिटवाने पर तुले हैं मियाँ. अब जो कहीं हमारे उन नज़ाकत और नफ़ासत वाले भाई जान ने पढ़ लिया तो हमारी तो आ जाएगी ना शामत.
अब ये जिस तरह लोगों को शरीफ होने की ग़लतफहमी होती है ना, वो बहुत दूर तलक जाती है. अब कितनी दूर तलक जाती है, वो हमने कोई नापी थोड़े ना है! कमाल करते हैं आप भी. अब आप भी देखिए, आप आए थे हमारे यहाँ ब्लॉगिंग के बारे में जानने और हम भी क्या ले बैठे ? ना जाने क्यों शराफ़त के चोचले ले बैठे. तो ये शराफ़त की बात छोड़ते हैं फिर कभी फ़ुर्सत से करेंगे.

तो मियाँ ब्लॉगिंग तो बात ऐसी है ज़नाब, अच्छा चलो मोहतरमां भी, अब खुश सभी. कुछ ग़लतफ़हमियाँ ऐसी हैं जैसे कि :

1. लोग हमें सबसे ज़्यादा इसलिए पढ़ते हैं कि हम बहुत अच्छा लिखते हैं

रहने दीजिए ज़नाब/मोहतरमां अगर सभी लोग सबसे ज़्यादा अच्छा पढ़ने के चक्कर में आते हैं तो ऐसा नही है. ऐसे कई हैं जो बहुत बहुत अच्छा लिखते हैं और जहाँ गिनी चुनी दस्तक ही दिखाई देती हैं और फिर अच्छे लिखे हुए से तो किताबें भरी पड़ी हैं, पुस्तकालय भरे हुए हैं खचाखच.

किसी को पढ़ने लोग ज़्यादा इसीलिए आते हैं कि उसने पाठकों को महत्व दिया, उससे संबंध स्थापित किया, उनकी टिप्पणियो का जवाब दिया, उनके सवालों का जवाब दिया. धीरे-धीरे संबंधों को आत्मीय बनाया. समय समय पर, समय के हिसाब से विषय वस्तु बदली, पाठकों को काम की बातें भी बता कर चले. इन सबके साथ साथ मूल्यवान सामग्री भी प्रस्तुत की.

2. अगर मैं ये लिखूं तो लोग आएँगे

ऐसा कहाँ होता है जनाब. जब तक लोगों को पता ही नही होगा तब तक कहाँ पढ़ा जाएगा. आपकी उपस्थिति होना अनिवार्य है कि हाँ आप मौजूद हैं और आपने फलाँ बात लिख दी है. मान के चलिए अगर किसी जंगल में कोई पेड़ गिरता है और अगर वहाँ कोई नहीं तो क्या वो आवाज़ करेगा. या कोई अच्छी फिल्म आकर चली जाए बिना विज्ञापन के तो क्या आपको पता चलेगा कि वह अच्छी थी या बुरी. कई दिनों और महीनों बाद पता चलेगा कि वो अच्छी थी. देख लो भैया अब. अरे हाँ वो ज़नाब के साथ मोहतरमां भी जोड़ लें :)

3. आप बहुत सारा पैसा कमा लेंगे

अब ये ग़लतफहमी तो आप पाल ही नहीं सकते कि हिन्दी ब्लॉगिंग से आप पैसा कमा के अमीर बन जाएँगे. तो मियाँ इन सब चक्करों में अभी ना पड़ें और दिल खोलकर बिना किसी चक्कर के हिन्दी ब्लॉगिंग करके हिन्दी को बढ़ाने में योगदान दें. जो कुछ भी दे सकते हैं दे ही दीजिए, कम से कम आपके पास रखा रखा खराब तो नहीं होगा ना.

हाँ एक बार हमने अपने उन नज़ाकत और नफ़ासत वाले भाई जान को अनिल कांत के बचपन की प्रेमकहानी सुनाई. तो वो बोले "ये शरीफ हैं, इनकी शराफ़त की..." क्या कहा कौन अनिल कांत ? अमाँ यार रहने दो ऐसे ऐसे सवाल नहीं पूँछते, अच्छा नही लगता, अब ऐसे में वो बुरा मान गये तो. अब कुछ तो उनके बचपन की इस शराफ़त को जानते हैं, अरे मतलब पढ़ चुके हैं. अब जो जो रह गये हैं वो इस नन्ही सी गुमनाम मोहब्बत लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं.

बाकी जनाब/मोहतरमां ग़लतफ़हमियाँ तो ना जाने कितने कितने तरह की होती हैं. सब गिनायी नहीं जा सकती ना. कुछ एक आपकी नज़र में हों तो बतायें ताकि हम सबका भला हो सके. क्या कहते हैं ?

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directory submissions

21 comments:

Udan Tashtari 4 December 2009 at 17:50  

न्दी ब्लॉगिंग करके हिन्दी को बढ़ाने में योगदान दें.

-बस फिलहाल तो सब लोग इतना ही करें और पुण्य कमायें. :)

अनिल कान्त 4 December 2009 at 17:55  

पुण्य कमाने की बात आपने सही कही, वैसे भी पुण्य कमाना लोगों का सपना होता है और यहाँ तो बिना कुछ गँवाये पुण्य मिल रहा है :)

Himanshu Pandey 4 December 2009 at 18:09  

चलिये ये हम भी कहे देते हैं आपकी ओर से एक बार फिर -
"दिल खोलकर बिना किसी चक्कर के हिन्दी ब्लॉगिंग करके हिन्दी को बढ़ाने में योगदान दें."

दिनेशराय द्विवेदी 4 December 2009 at 18:30  

प्रत्येक ब्लागर किसी न किसी क्षेत्र की विशिष्ठ जानकारी रखता है जो इंटरनेट पर हिन्दी में उपलब्ध नहीं है। वह उस जानकारी को ब्लाग पर डाले। इंटरनेट पर हिन्दी में जानकारी उपलब्ध कराए तो आने वाले समय के लिए अच्छा होगा और हिन्दी की सेवा भी होगी।

दिनेशराय द्विवेदी 4 December 2009 at 18:31  

और जो सेवा करता है, उसे कभी तो मेवा मिलना ही है। आशा लगाए रखिए। किसी न किसी रूप में अवश्य मिलेगा।

अनिल कान्त 4 December 2009 at 18:34  

द्विवेदी जी आपने यह बात लाख टके की कही, इससे जहाँ इंटरनेट पर हिन्दी बढ़ेगी वहीं अलग अलग क्षेत्रों से संबंधित ज्ञान हिन्दी में होने से तमाम लोगों का फ़ायदा होगा जोकि वह ज्ञान हिन्दी में ना होने के कारण ठीक से पढ़ नही पाते

Anu...:) 4 December 2009 at 20:54  

Looks like you've done a lot of research on blogging..:)

Anonymous,  4 December 2009 at 21:00  

blogging world ke bare mein kafi had tak sahi likha hai...research badhiya hai...

अर्कजेश 4 December 2009 at 21:51  

यदि ब्‍लॉगिंग करने की कुछ वजह न हो तो भी समीर जी की बात पर्याप्‍त है हिन्‍दी प्रेमियों को ब्‍लॉगिंग करने के लिए ।

विनोद कुमार पांडेय 5 December 2009 at 00:06  

अच्छा बोलो , अच्छा लिखो,अच्छा पढ़ो और अच्छाई का प्रचार करो बस इसी को बनाएँ ब्लॉगिंग का उद्देश्य वक्त अच्छा काट जाएगा....आपने बहुत ही बढ़िया बात कही...

Sandhya 5 December 2009 at 00:52  

Well said about making a rapport with the readers. Blogging requires a lot of time and a half hearted effort doesn't bring the desired results.

अनिल कान्त 5 December 2009 at 09:51  

संध्या जी और विनोद जी आप लोगों ने बिल्कुल सही कहा. शुक्रिया आप लोगों का अपनी अपनी राय देने के लिए

Dr. Zakir Ali Rajnish 5 December 2009 at 11:31  

हूँ. तो आजकल ब्लॉगर का कल्याण कर रहे हैं।
लगे रहिए, हम भी पढ रहे हैं।
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अदभुत है मानव शरीर।
गोमुख नहीं रहेगा, तो गंगा कहाँ बचेगी ?

Ria Sharma 5 December 2009 at 11:37  

Scho mwith Dinesh Dwide ji !!

very well said !!

Anil ji shuru ho jayen ab apnee usee shaandaar kahaniyon ke saath.....we are wating hmm!!

Anonymous,  5 December 2009 at 12:24  

Great research or discovery wah!

Sulabh Jaiswal "सुलभ" 5 December 2009 at 13:44  

ब्लोगिंग कोई खेल नहीं है; ये तो अपना गाँव चौपाल है जहाँ अभिव्यक्ति की आजादी है… कईयों के लिए एक मिशन है… एक सेवा है…

- सुलभ
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द्विवेदी जी और समीर जी की बात अनुकरणीय है

अनिल कान्त 5 December 2009 at 13:47  

सही कहा सतरंगी जी, आपकी बात भी गौर करने लायक है.

रश्मि प्रभा... 5 December 2009 at 14:13  

blogging ka sahi tazurbaa haasil kiya hai

दिगम्बर नासवा 5 December 2009 at 14:43  

सहयोग, पुण्य, योगदान ... जो भी है अपने आप में इक मज़ा तो देता ही है .........

Chandan Kumar Jha 5 December 2009 at 15:35  

चलिये आज अपनी बहुत सारी गलतफ़हमियाँ दूर हुई । वैसे कमाल की पोस्ट है यह ।

L.Goswami 6 December 2009 at 00:36  

क्या अनिल .. पूरा तमाशा लगा के ही छोड़ोगे ..हा हा हा

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