झूठा सच बनाम समाजशास्त्र

>> 10 December 2009

मास्टर जी कक्षा में ब्लैक बोर्ड के सामने हाथ में डंडा पकड़े हुए किसी चुनाव में दिए जाने वाले भाषण के समय मंत्री की तरह दहाड़ रहे हैं और ख़ुद को शेर से कम नहीं समझते हुए पूँछ रहे है कि बताओ "कि सतहत्तर, अठहत्तर और उनहत्तर में से कौन सी संख्या बड़ी है ।" सब बच्चों को ऐसे सांप सूंघ गया जैसे कि जिला अधिकारी की बैठक में भाग लेने वाले नीचे के अधिकारी और बाबुओं को सूंघ जाता है.

मास्टर जी फिर से दहाड़ते हैं कि "क्यों खाने के वक्त तो ये मुंह बड़ी जल्दी खुल जाता है ? सबेरे सबेरे आ जाते हो अपनी अपनी नाँद भर भर के और अब देखो तो किसी का मुँह नहीं खुल रहा है ।" कक्षा में उपस्थित ज्यादातर बच्चे उंघाह रहे हैं, कुछ जम्हाई ले रहे हैं, जैसे कि किसी मंत्री के लंबे दिए जाने वाले भाषण में किए हुए वादों के वक्त उनके सहयोगी साथीगण ये सोच जम्हाई लेते रहते हैं कि कर दो भाई जितने वादे करने हैं, कौन सा पूरा करना है ? जो मन में आए बस बक दो फटाफट.

मास्टर जी एक बच्चे को खड़ा कर लेते हैं, इशारा करते हुए बोलते हैं "हाँ भाई तुम" उसके अगल बगल वाले बच्चे ख़ुद की तरफ़ देखते हैं फिर मास्टर जी की तरफ़ और ये सोच डरते हैं कि कहीं हमें खड़ा तो नहीं कर रहे । हाँ तुमसे ही कहा रहा हूँ " क्या नाम है तुम्हारा श्याम ?" वो लड़का खड़ा हो जाता है और बोलता है "नहीं मास्साब, रामभरोसे" सुनकर मास्टर जी बोलते हैं "अब जब तुम्हारा नाम ही रामभरोसे है तो तुम्हें क्या ख़ाक पता होगा, पर उस दिन तो तुमने अपना नाम श्याम बताया था" लड़का खड़ा खड़ा कहता है "नहीं मास्साब, मेरा नाम रामभरोसे ही है ।" मास्टर जी उसे घूरते हुए कहते हैं "अच्छा अच्छा, ठीक है-ठीक है । क्या नाम है तुम्हारे पिताजी का ?" लड़का बोलता है "जी रामलाल" मास्टर जी बोलते हैं "तुम रामभरोसे और वो रामलाल, बड़ा प्यार है राम से, तुम्हारी अम्मा का क्या नाम है ?" लड़का बोलता है "जी रामदुलारी और बाबा का रामदीन, चाचा का रामसनेही, रामकिशोर, रामदयाल, राम पाल" मास्टर जी चिढ़ते हुए बोलते हैं "रुक क्यों गया और कोई रह गया तो उसका भी बता दे" तो वो शुरू हो जाता है "रामकटोरी हमारी दादी, रामबिटिया, रामवती हमारी बहने" तब तक मास्टर जी चिल्लाते हैं "अब चुप बैठेगा कि दूँ एक खींच के, पूरा का पूरा घर राम से जुड़ा हुआ लगता है, जरूर ये उस शास्त्री का किया धारा होगा उसी के खानदान ने तुम लोगों के ये नाम धरे होंगे"

मास्टर जी फिर से एक बच्चे की तरफ़ इशारा करते हुए कहते हैं "हाँ तुम बताओ, कौन सी संख्या बड़ी है ?" लड़का खड़ा खड़ा सिर खुजलाने लगता है, कभी ऊपर देखता है और फिर कभी नीचे। तब तक मास्टर जी कहते हैं "ऊपर क्या तुम्हारे दद्दा लिख कर छोड़ गए हैं कि कौन बड़ा है, आ जाते हैं बिना मुँह धोये पढने, रात का बचा हुआ जो भी होता है भर आते हो तेंटुये (गले) तक और यहाँ आकर सोते रहते हो दिन भर" कुछ देर में मास्टर जी के हाथों 4-6 बच्चे ठुक चुके होते हैं फिर मास्टर जी दहाड़ते हुए ऐसे बताते हैं कि ये सिर्फ़ उन्हें ही पता था कि "अठहत्तर बड़ी है गधों"

थोड़ी देर बाद मास्टर जी दूसरी कक्षा में पहुँच कहते हैं कि "दहेज़ प्रथा के ऊपर जो निबंध लिख कर लाने को कहा था वो सब अपनी अपनी कापियाँ दिखाओ" सब बच्चे अपनी अपनी कापियाँ जमा कर देते हैं । मास्टर जी यूँ ही कोई भी काँपी उठा कर देखने लग जाते हैं, थोड़ी देर पढ़ते हैं और फिर कहते हैं "किसकी है ये काँपी ?" नाम पढ़ते हैं और चिल्लाते हैं कि "खड़े हो जाओ", लड़का खड़ा हो जाता है । मास्टर जी कहते हैं "ये क्या लिख रहे हो तुम, कुछ भी अंट शंट, दहेज़ प्रथा बहुत जनम जनम पुरानी प्रथा है, मेरे बापू मुझे रोज़ उलाहना देते हैं कि तू जितना चाहे मौज उड़ा ले . तेरे ब्याह के बखत तेरे दहेज़ में सब वसूल लूँगा । रामदीन के लड़के को बहुत अच्छा दहेज़ मिला है । वो रोज़ अपनी फटफटिया पर बाजार जाता है । जिस किसी की शादी में जितना दहेज़ आता है उसके लगन में उतनी ही अधिक बन्दूक से गोलियां चलती हैं, पिछले साल ही रामधन के लड़के के लगन के बखत गोली चल जाने से छत पर खड़ा बिर्जुआ ढेर हो गया था । जब लगन के बखत दहेज़ न मिले तो फेरे के बखत नाटक करने से बचा हुआ दहेज़ मिल जाता है । पर रामकिशोर के लड़के की शादी के बखत पूरी बारात को बाँध के डाल लिया था, जैसे तैसे उन्होंने छोड़ा और शादी भी नहीं की । वो तो नाक कट रही थी इस कारण उसी गाँव की कोई दूसरी लड़की से चट मंगनी और पट ब्याह कर डाले। हम भी सोचत हैं कि जल्दी से हमारा भी लगन हो जाए तो हम भी फटफटिया घुमाए पूरे गाँव में । " मास्टर जी उस लड़के के मुँह पर काँपी फैंक कर मारते हैं और उसे पास बुलाकर 8-10 खींच खींच के रसीद करते हैं, थोड़ी देर में वो रोता, भुनभुनाता, चुपचाप होकर अपनी जगह बैठ जाता है ।

मास्टर जी दूसरी काँपी उठाते हैं, थोड़ी देर पढ़ते हैं और फिर नाम पुकार कर खड़ा करते हैं । उसकी शक्ल की तरफ़ देखते हैं और कहते हैं "तुम वही रामदीन दूधवाले के लड़के हो ।" वो मुँह फाड़ कर खुश होते हुए बोलता है "हाँ उन्हीं का हूँ ।" मास्टर जी कहते हैं "कि तुमने ये क्या बकवास लिखा है । दहेज़ प्रथा हमारी संस्कृति है । इस प्रथा की वजह से हमारा पूरे संसार में बहुत नाम है । दहेज़ लेकर रामलखन, रामपाल, रामसुंदर, रामनिवास सबके सब गुलछर्रे उड़ा रहे हैं । उन्हें दहेज़ में बहुत मोटी रकम मिली तो अब वो जी खोल के ताश पत्ता खेलते हैं, पिच्चर देखते हैं, फटफटिया घुमाते हैं और बीडी पीकर मस्त रहते हैं । बापू कहते हैं कि दहेज़ तो लेना पड़ता है, नहीं तो समाज में हमारी नाक न कट जायेगी, कि देखो तो रामसिंह के लड़के को फूटी कौड़ी नहीं मिली, पूरा नाम मिटटी में मिल जाएगा और फिर पूरी जिंदगी तुझे अपनी उस लुगाई को बैठालकर खिलाना भी तो पड़ेगा । तो दहेज़ तो लेना ही पड़ता है बेटा । बापू सोचते हैं कि मेरे लगन में फटफटिया तो मिलेगी ही मिलेगी और 4-6 भैंस भी मिल ही जायेंगी । मैं भी सोच रहा हूँ कि जल्द से जल्द लगन हो तो फटफटिया लेकर खूब मौज उड़ायें और उन भैंसों का दूध बेचने बाजार जाएँ।" मास्टर जी गुस्से में आकर उस लड़के के पास पहुँच कर उसकी डंडे से सुताई कर देते हैं।

मास्टर जी फिर उन्हें समझाते हैं कि दहेज़ लेना बहुत बुरी बात है और ये हमारे समाज पर एक कलंक है । यह हमारे समाज को अन्दर ही अन्दर खोखला कर रहा है । इसी दौरान गाँव के रामसुख चाचा आ जाते हैं और वो मास्टर जी को इशारा करके बाहर बुलाते हैं । मास्टर जी बाहर जाते हैं तो रामसुख चाचा कहते हैं "कि पल्ले गाँव के कृष्णचंद जी आए है अपनी लड़की का रिश्ता आपके लड़के के लिए लेकर ।" मास्टर जी कहते हैं कि "वो तो पहले भी आ चुके हैं, मैंने उन्हें पहले ही इशारों ही इशारों में बता दिया था कि उतने कम पैसे में मैं अपने लड़के का लगन नहीं करूँगा, आख़िर हमारी भी कोई इज्ज़त है ।" रामसुख चाचा कहते हैं "अरे मैं इस बार उन्हें सब समझा लाया हूँ, वो सब मान गए हैं और जितना तुम चाहते हो उतना दहेज़ दे देंगे, बाकी चिंता काहे करते हो, हम हैं ना । " मास्टर जी मुस्कुरा जाते हैं ।

20 comments:

Sudhir (सुधीर) 11 December 2009 at 05:50  

मजेदार किन्तु आज के परिवेश पर कुशल कटाक्ष

मनोज कुमार 11 December 2009 at 07:07  

बहुत अच्छा । प्रेरक। बधाई स्वीकारें।

आशु 11 December 2009 at 07:42  

बहुत बढ़िया अनिल जी. पढ़ कर बचपन के हमारे फ्जिक्स के मास्टर जी की याद आ गयी

आशु

प्रवीण त्रिवेदी 11 December 2009 at 08:08  

बहुत बढ़िया !

मास्टर जी को हमारा नमस्कार पहुंचाएं!

वाणी गीत 11 December 2009 at 08:47  

दोहरे मापदंडों पर क्या खूब तमाचा जड़ दिया है आपने ...
सोचने की बातही ...जिन पर पूरी पीढ़ी को शिक्षित करने का दायित्व है ..स्वयम् उनके व्यवहार मे ही दोगलापन है तो फिर नयी पीढ़ी पर ही सारा दोष क्यों ..??

vandana gupta 11 December 2009 at 12:06  

dohre mapdand hamesha hi rahe hain insaan ke phir chahe yug koi bhi ho.

Hiral 11 December 2009 at 14:42  

बेहद सटीक कटाक्ष, शुक्रिया अनिलकांतजी।

अर्कजेश 11 December 2009 at 17:35  

बहुत ही मनोरंजक व्‍यंग है । मजा आ गया पढकर । बहुत बढिया चित्रण ।

padmja sharma 11 December 2009 at 23:51  

अनिल जी
अच्छा और असरदार व्यंग है . इसके लपेटे में कई आ गए .

दिगम्बर नासवा 12 December 2009 at 14:10  

भाई हमको तो हमारे सरकारी स्कूल के गणित के टीचर याद आ गये .........
अच्छा व्यंग भी है आपकी पोस्ट में अनिल जी .........

Ashish (Ashu) 12 December 2009 at 19:38  

बहुत कुछ चन्‍द शब्‍दों में व्‍यक्‍त किया, आभार ।

Krishna 12 December 2009 at 19:43  

Real truth,
but such things are also benefits to our society if the thinking's of the dahej lene walo ki thodi change ho jaaye.
Because this teach us the method of how to remain away from selfish persons.

पंकज 12 December 2009 at 21:45  

आजकल ऐसे दहाडू मास्टर नहीं होते. उनके दहाडने पर पेरेंटस दहाडने लगते हैं.

संगीता स्वरुप ( गीत ) 14 December 2009 at 14:16  

यही दोगलापन समाज को पतन के गर्त में ले जाता है...
सटीक व्यंग है.....बधाई

Smart Indian 16 December 2009 at 03:14  

मज़ा आ गया यह कक्षा देखकर. ठीक ही है, हाथी के दांत...

राकेश 'सोहम' 16 December 2009 at 13:23  
This comment has been removed by the author.
राकेश 'सोहम' 16 December 2009 at 13:24  

झूठा सच बनाम समाज शास्त्र एक बार नहीं बार-बार पढ़ा . हास्य से शुरुआत गंभीरता के साथ कटाक्ष कर गई . बहुत-बहुत - बहुत ही अच्छा . अपनी कुछ बात इस तरह कि -

बेटी के
हाथ से
पीला रंग
उड़ जाता है,
और न जाने
कौन उसे
पिता के चेहरे पर
मल जाता है !

वन्दना महतो ! (Bandana Mahto) 17 December 2009 at 02:30  

bahut hi badhiya.. hamesha ki tarah.... aur kya kahun...

MD. SHAMIM 23 May 2012 at 22:54  

hamare yahan ke sabhya log aksar shadi ki baatchit ke dauraan dahez is tarah maangte hain........


DEKHIYE HAMARI OR SE KOI MAANG NHI HAI,
BAS AAP JAMANE KE LIHAJ SE DE DIJIYEGA

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