उस जानिब रूहानी तक़द्दुस चेहरे
>> 04 January 2010
उन नीम के झरते हुए पीले पत्तों और उतरकर गाढे होते हुए अँधेरे के बीच चलती हुई बातें बहुत दूर तक चली गयी थीं । हम अपने अपने क़दमों की आहटों से अन्जान बहुत दूर निकल गये थे । तब उसने यूँ ही एकपल ठहरते हुए कहा था ....
-यह नीम की ही पत्तियाँ झड रही हैं न...
-हाँ, शायद पतझड़ का मौसम है ।
-नहीं ये अँधेरे का मौसम है...लगता है अँधेरा हौले हौले झड़ता हुआ गहरा रहा है ।
तब वो एकपल के लिये मद्धम से मुस्कुरा दी थी...फिर उसने कहा
-कितना अच्छा हो कि हम न कुछ पूँछे और न जाने...अपनी अपनी जिंदगी के जवाब एक दूजे से न माँगें । दिमाग को इसमें शामिल न करें और उसे जी लें जिसे ये दिल जीना चाहता है ।
तब वो ढेर सारे उसके बाद के खामोश पल कब और कैसे गुजर गये....कहाँ पता चला था
वक़्त जब पहलू बदलता है तो खामोश सा चुपचाप गुजर जाता है ।
तब रात चाँदनी थी । हवा गुनगुनाती सी कानों को छूकर जा रही थी । दिल की आहटें दूजे के दिल तक अपना सन्देश गुपचुप पहुंचा रही थीं ।
तब मैंने उससे कहा था
-लगता है आज पूरे चाँद की रात है !
-नहीं, आज चाँद कुछ अधूरा सा जान पड़ता है...कल पूरे चाँद की रात होगी !
उसकी इस बात पर चाँद उतरकर उसके गुलाबी गाल को थपथपा कर चल दिया था । मैंने मुस्कुराते हुए उस चाँद को जाते देखा...
उसने यूँ ही आहिस्ता से चाँद को जाते देखकर पूँछा
-आपको सपने देखना पसंद है...
-हाँ, बहुत...शायद मुझे उससे ज्यादा पसंद है, सपनों को जमा करना...रंग बिरंगे सपने, खूबसूरत सपने, अपनों के सपने, अपने सपने
-सच !
-हम्म्म्म....मैंने ठंडी साँस भरकर कहा
-क्योंकि जमा किये सपने याद बन जाते हैं और उन सुनहरी जमा यादों को मैं अक्सर थपथपा कर उनका हाल पूँछता हूँ । उन यादों में वो सपने बिलकुल अपने लगते हैं ।
यह कहते हुए मैं खामोश सा हो चला था । वो उस पल बोली थी...
-यादें पवित्र होती हैं...शायद इसी लिये जमा रह जाती हैं
-तब उन गहरी हो सकने वाली यादों को, जिनकी आहटें भी रूहानी संगीत छेड़ती हैं, संवारने के लिये हम एक सफ़र पर चल दिये थे...
उस खामोश फैली हुई चाँदनी में उसके ओंठ तितली के पंखों की तरह खुले और काँपे थे और उसकी पलकें सीपियों की तरह मुंद गयीं थीं...जिस पल दोनों के ओठों के स्पर्श ने उस यादगार गहराए हुए पल को एक खुशनुमा न भूलने वाली याद बना लिया था । खुलती और बंद होती सीपियों का वह संसार एक अध्याय बन जिंदगी से जुड़ गया...
* तक़द्दुस = पवित्र, उस जानिब = उस ओर
36 comments:
बहुत बढ़िया..
सुंदर....
अनिल जी..नमस्कार...
आप जो लिखते है उसका अन्दाज़ ही निराला होता है।
तसव्वुर को खूबसूरती से बयां करते है आप...
यू ही लिखते रहिए..
आप दोनों का बहुत बहुत शुक्रिया
"यादें पवित्र होती हैं...शायद इसी लिये जमा रह जाती हैं"
या यूँ कह लीजिये की वो ख़ूबसूरत पल जिन्हें हम बार बार जीना चाहते हैं उन्हें ख़ूबसूरत यादें बना कर अपने दिल में बसा लेते हैं...
हमेशा की तरह एक और सुन्दर अभिव्यक्ति !!!
"यादें पवित्र होती हैं...शायद इसी लिये जमा रह जाती हैं"
ऋचा जी से सहमत,बहुत बढ़िया रचना!
इस खुबसूरत रचना के लिए बहुत बहुत आभार
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं ................
जबरदस्त अंदाज...बहा ले जाते हो भाई!!
’सकारात्मक सोच के साथ हिन्दी एवं हिन्दी चिट्ठाकारी के प्रचार एवं प्रसार में योगदान दें.’
-त्रुटियों की तरफ ध्यान दिलाना जरुरी है किन्तु प्रोत्साहन उससे भी अधिक जरुरी है.
नोबल पुरुस्कार विजेता एन्टोने फ्रान्स का कहना था कि '९०% सीख प्रोत्साहान देता है.'
कृपया सह-चिट्ठाकारों को प्रोत्साहित करने में न हिचकिचायें.
-सादर,
समीर लाल ’समीर’
बहुत बढ़िया लिखा है।धन्यवाद।
padhte huye yun laga jaise koi nazm padh rahe ho........bahut sundar
यादो को खुबसूरत अंदाज़ में अभिव्यक्त किया आपने बहुत बढ़िया शुक्रिया
बहुत अच्छी भावाभिव्यक्ति धन्यवाद !!
यादें पवित्र होती हैं...
Bas yahi yaad rakhna chahti hu...
अनिल भाई.. क्या बात है.. आपके रंग नहीं बदले.. बहुत अच्छा लगा पढकर..
तुमने प्रियवंद की कहानियां पढ़ी है?
याद दिलाते हो तुम उनकी। मेरी बात याद है ना? वो पत्रिकाओं में भेजने वाली...
पवित्र यादे.. वाह क्या ख्याल है..
पेड़ से टूट कर गिरते हुए गाढ़े होते अंधेरे के मौसम की बीच बिखरी अधूरी चांदनी मे अस्फुट से मगर दिलकश सुरों की आपसी बातचीत और उन सुरों के अक्स पर झिलमिलाती पवित्र यादों के एक रहस्यमय वातावरण सा रचता आपका यह कथा-अंश एक स्वप्नलोक का टुकड़ा सा लगता है..जिसमे दिमाग की चतुरताओं को कोई इंट्री नही है दिल के पवित्र भावों के सामने..
आपकी भाषा का तो वैसे भी काइल रहा हूँ मैं...अंतिम पैरा तो जैसे निर्मल वर्मा का ’परिंदे’ का रिलोडेड एडीशन हो...
गौतम सर जी मैने प्रियंवद की कहानियाँ नही पढ़ी कभी. हाँ आपकी बात याद है मुझे.
अपूर्व, केतन भाई और सभी साथीगण आपकी टिप्पणी हौसला बढ़ाती हैं.
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है।
यादें पवित्र होती हैं...शायद इसी लिये जमा रह जाती हैं"
सही मे कितनी बडी बात कह दी है आपने। आपका एक पल को इतनी संवेदनाओं मे समेटना मुझे बहुत अच्छा लगता है इसी तरह लिखते रहिये शुभकामनायें
ur posts r awesome , i hv read only 2 on the page nd 1 long back...bt more than ur posts ur page on u rocks!
i m just smitten by the way u hv xpressed ur self!
ur a treat to read...though reading hindi is nt vry fascinating fr me always...
उसकी इस बात पर चाँद उतरकर उसके गुलाबी गाल को थपथपा कर चल दिया था ।
क्या बात है!! बहुत शानदार.
आपकी यादों का केनवस बेहद लाजवाब, दिलचस्प और गहरा है .......... हमेशा की तरह बेहतरीन पोस्ट ........
अँधेरे का मौसम है.maddam sa muskurana,hwa ka gungunanaa azeeb sa sammohan hai kahani me..
Khubsurat post... Anil Bhai... laga jaise kisi Novel se ru-b-ru ho raha hoon... page mod kar rakh liya hai... phir aage padhunga... haan
Mirza Ghalib ke liye...
-यह नीम की ही पत्तियाँ झड रही हैं न...
-हाँ, शायद पतझड़ का मौसम है ।
Andaaz Niraala Hai Aapna...
वक़्त जब पहलू बदलता है तो खामोश सा चुपचाप गुजर जाता है ।
... वाह क्या बात है।
उसकी इस बात पर चाँद उतरकर उसके गुलाबी गाल को थपथपा कर चल दिया था । मैंने मुस्कुराते हुए उस चाँद को जाते देखा...
pyari si rachna...resham ki lacchchhi...
..."शायद मुझे उससे ज्यादा पसंद है, सपनों को जमा करना...रंग बिरंगे सपने, खूबसूरत सपने, अपनों के सपने, अपने सपने"...बहुत ही अच्छी आगी ये पंक्ति..सपने हैं तब ही जीवन है..वरना मशीन बन कर रह जाएँ...
बहुत ही सुन्दर भाव लिए कहानी...एक कविता जैसी.
उस खामोश फैली हुई चाँदनी में उसके ओंठ तितली के पंखों की तरह खुले और काँपे थे और उसकी पलकें सीपियों की तरह मुंद गयीं थीं...जिस पल दोनों के ओठों के स्पर्श ने उस यादगार गहराए हुए पल को एक खुशनुमा न भूलने वाली याद बना लिया था । खुलती और बंद होती सीपियों का वह संसार एक अध्याय बन जिंदगी से जुड़ गया...
realy it's very nice ...
thanx for nice post
...कहते हैं के अनिल कांत का है अंदाजे-बयान और!
वाह ....क्या खूब लिखते हैं आप अनिल ...कोई किस्सा सुना रहे हैं या किसी मधुर कविता के खूबसूरती में उलझ गयी हूँ समझा ही नहीं पा रही हूँ ..
पूरे चाँद की रात से पहले उसके अधूरेपन को महसूस करना ....चाँद का उतर कर आना और गालों को थपथपा कर जाते हुए उसे देखना अपने आप में किसी शायरी से कम है क्या ...
लोग तो सपने देखा करते हैं पर सपने जमा करने का ख़याल सच कितना हसीं है ....
यादों का ये हसीं सफ़र यूँ ही चलता रहे ...रूहानी संगीत का जलतरंग यूँ ही बजता रहे ....
शुभकामना ...
एक बात और आपका मिर्जा ग़ालिब वाला ब्लॉग भी देखा , पढने की तमन्ना भी है ...वक़्त निकाल कर पढूंगी भी क्यूंकि ग़ालिब के तो हम भी मुरीद हैं ....
बडी दूर की कौडी खोज कर लाते हो भाई।
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अपना ब्लॉग सबसे बढ़िया, बाकी चूल्हे-भाड़ में।
ब्लॉगिंग की ताकत को Science Reporter ने भी स्वीकारा।
bahut hi behtarin abhivyakti........
beautiful expression....
hamzubaan hone ka bhi shukriya.
i have listin many of urs,but dis is a mile stone off urs.
good one anil
behad khubsueat likha hai
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