बलदेव की प्रेम समस्या

>> 16 April 2010

बलदेव का नाम ना जाने किन विकट परिस्थितियों में बलदेव रखा था ये तो उसकी दादी ही जानती थी बलदेव डेढ़ पसली का 20-21 बरस का पतला सूखा सा दिखने वाला लड़का शर्ट को भी शर्म आती होगी कि मुझे किस कम्बखत ने पहन लिया । एक बार बलदेव के बाप ने बलदेव को एक लड़की के साथ हाथों में हाथ डाले किसी पार्क में घूमते हुए देख लिया । उस समय तो बलदेव के बाप ने कुछ नहीं कहा और अपनी साइकिल के पैडल मारते हुए आगे बढ़ गया ।

शाम को जब बलदेव अपनी हड्डियों समेत घर को पहुँचा तो उसके बाप ने पूँछा
-चौ रे आज कहाँ घूम रओ
-"कहूँ नाय" बलदेव बाप की बात पर कुछ सकपकाते हुए बोला ।
-"लला जो तू कर रओ है ना, बू हम करिके भूल चुके हैं, समझे " बलदेव का बाप बोला ।

इतने में बलदेव की माँ आवाज़ सुनते हुए उधर आ गयीं । "का हुआ ? काहे धरती आसमान एक करैं भये हो ?"
-"जाते पूँछो, अपये लला से, जी आज कहाँ घूम रहो बा मोढी के संग, हाथ में हाथ डारि कै" बलदेव का बाप बोला ।
-"जी का बकि रहे हो अंट शंट । जरुर तुम्हाई आखन ने धोखा खाओ होगो । कोई और देखो होगो ।" बलदेव की माँ बोली ।
-"हाँ अब तो मेई आँखें ख़राब होइंगी ही । तब ना ख़राब भई जब तोई जा घर में बियाहि के लाओ । राम कसम जेहि हतो । बा मोढी के संग खीसें फारि फारि कें बातें कर रहो । जाते पूँछो, जी पढिबे जातु है का रास लीला रचाइबे ।" बलदेव का बाप गुस्से में साँस भरते हुए बोला

बलदेव की माँ बलदेव कें दो थप्पड़ लगाती हैं और पूंछती हैं "चौं रे को मोढी है ? कहाँ घूम रहो हतो ? अगर दुबारा कहूँ घूमतु देखि लओ तो तेरी खैर नाय"

बलदेव अपनी पूरी साँस भर के और पूरी हिम्मत जुटा कर बोलता है "मैं बा ते प्यार कत्तु हूँ ।"
-"देखि रही हो, जाई अबै से प्यार है गओ । बित्ती भर को छोकरा और प्यार करिबे चलो है ।" बलदेव का बाप बलदेव की माँ से बोला ।
-"तोई जादे ही जवानी छाई रही है । कोई काम बोलो तो कैसें टें निकरि जात है और प्यार करिबे चलो है । ख़बरदार जो दोबारा बा मोढी से मिलो तो । " बलदेव की माँ बोली

-बलदेव एक कोने में घुसता हुआ बोला "ज्यादा करोगे तो हूँ भागि जाउंगो "
-"किनके संग बा मोढी के संग ? लला भाजि के जाओगे कहाँ ? यहाँ पे तो मिल जाती हैं सुबह शाम बिना कछु करें । का खाबेगो और का खिलाबेगो ? " बलदेव का बाप बोला ।
-"हूँ गाँव भाजि जाउंगो " बलदेव बोला ।
-"लला तू का सोचतु है । गाँव में जिंदगी बोत आसान है का ? गाँव में तो बस 100 दिन ही काम मिलतु है सरकार की ओर सों । फिर तो में तो हड्डी ही हड्डी हैं । तू का ख़ाक करेगो । मान लई क तू करि लेगो । फिर 100 दिन बाद का खाबेगो । भाजि कें शहर ही जाबेगो । और तोही तो कछु आतु नाही । शहर में तो लाखों पढ़े लिखे घूम रहे हैं चप्पल चटकात भये । जब लीलिबे कों कछु नहीं मिलेगो तो सब जवानी धरी रही जावेगी और बा मोढी को भी पतों चलि जाबेगो क बाप के पैसन पे प्यार करिबो बोत आसान है ।"
-लला जे प्यार व्यार सब बिन के काम हैं जिन पे और कोई काम नाय । पहले दो चार रूपया कमाइबे लायक बनो तब प्यार करियो । नाहि तो खाली हाथ रहि जाओगे । ना मोढी मिलेगी और ना घर के रहोगे ।" बलदेव का बाप समझाते हुए बोला ।

- "जा प्यार को भूत अपये सर पे से उतार दे और चुपचाप पढाई लिखाई पे ध्यान दे । चले हैं बड़ो प्यार करिबे कों ।" बलदेव की माँ खीजते हुए बोली ।

18 comments:

M VERMA 16 April 2010 at 17:40  

बलदेव भाई
माँ ठीके कह रही है ना मान जा उसकी बात
अनिल भाई
साँस रोककर पढा. बेमिसाल

Abhishek Ojha 16 April 2010 at 18:46  

ये तो हर बित्ती भर को छोकरा की समस्या है.... जब उम्र बीत जायेगी तो प्यार क्या ख़ाक करेगा और जब दो-चार रूपया कमाने लायक नहीं बनेगा तो प्यार करके क्या करेगा. क्लासिक डायलेमा है भाई.

Sandhya 16 April 2010 at 19:18  

That was a nice light read, in a local dialect! Well Written.

Udan Tashtari 16 April 2010 at 23:10  

लल्ला ऐसे नहीं समझेंगे, दो चार कान के नीचे और उड़ाओ..यही प्यार का भूत उतारने का मंत्र है. :)

(बलदेव के पिता जी के लिए कमेंट किया है)

Neeraj Rohilla 17 April 2010 at 00:02  

अगर बलदेव को उसके पडौस के चाचा ने पकडा होता तो, और अगर बलदेव के पिता (बाबूलाल) की कचौडी की दुकान होती तो वो पडौसी दुकान पे जा के:

बाबूलाल राम राम,
दुकान के नौकर से: लला जरा दो कडक बेडई दिओ, नेक सब्जी और डार...ऐसे टपका रओ है जैसे सहद हो...

बाबूलाल, तेरो छोरा काँ है? कई दिनो से दिखा नई?
बाबूलाल: पढवे को गऊ है कालेज में, नेक पढ लिख लेगो तो हलवाईगीरी से बच जावेगो...

हाँ कलट्टर बनेगो, तोहे कोई खबर नई, तेरो छोरो कियाँ कियाँ फ़िर रओ आजकल...
रामचरन ने केई मोढी के साथ घूमते देखो...और रामचरन ने देखि के भाज गओ ऊआं से...

बाबूलाल: तेरी बात सच्ची भई तो येंई भट्टी के सामने भूत बनाके मारूंगा वाये...:)

अजित गुप्ता का कोना 17 April 2010 at 09:32  

जेब में दमड़ी नहीं हो तो लड़की कहाँ टिकेगी।

Anil Pusadkar 17 April 2010 at 17:04  

प्यार में भी तो आजकल बडे लोगों की मोनोपली हो गई है.

Anu...:) 18 April 2010 at 02:49  

Nice...:)
Btw,which Hindi is it?

दिगम्बर नासवा 18 April 2010 at 14:28  

बहुत खूब अनिल जी .... मज़ा आ गया ........ क्षेत्रीय भाषा का प्रयोग बहुत मजेदार किया है .... ग्रामीण क्षेत्र की हक़ीकत बयान कर दी है आपने ....

अनिल कान्त 18 April 2010 at 16:46  

Yah Hindi Agra/Mathura ki taraf khoob boli jati hai

वन्दना अवस्थी दुबे 18 April 2010 at 19:32  

क्षेत्रीय बोली में लिखा गया प्रभावशाली व्यंग्य. मुझे ये बोली ब्रज की लग रही है, लेकिन आप हरियाणा में हैं...

अपूर्व 19 April 2010 at 01:01  

आप भी यार गज़ब करते हो..दिल लूट लिया..इतना कॉमन सा सीन है कि हर लाइन के बाद लगता है कि अब यह होगा..मगर इतना स्वाभाविक और दिलफ़रेब..और जिस तरीके से देसी जुबान का इस्तेमाल किया है यहाँ कि बस इतनी छोटी पोस्ट से बात नही बनेगी..आगे बढ़ाओ..वन्स मोर!!!
और नीरज साहब की टिप्पणी वाकई पोस्ट को आगे ले जाती है..मस्त!!

अनिल कान्त 19 April 2010 at 09:02  

वंदना जी मैं भी तो ब्रज भाषा के क्षेत्र से ही हूँ . मैं फिरोजाबाद/आगरा से हूँ. मैं हरयाणा में नौकरी करता हूँ.

संगीता स्वरुप ( गीत ) 19 April 2010 at 11:54  

एक सच रख दिया है....और क्षेत्रीय भाषा में लिखा है तो और सोने पर सुहागा....

रश्मि प्रभा... 21 April 2010 at 14:49  

- "जा प्यार को भूत अपये सर पे से उतार दे और चुपचाप पढाई लिखाई पे ध्यान दे ।,,, badhiyaa

PANKAJ SHUKLA (KRISHNA) 7 May 2010 at 14:25  

Anil ji Firozabad me kaha se ho Batana hum bhi aapke padosi hai

विवेक रस्तोगी 9 May 2010 at 12:17  

प्यार करने के लिये भटके हुए नौजवानों को बिल्कुल सही सीख उसके माँ बाप से

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