ख़्वाबों की लच्छी !
>> 19 June 2010
उसकी आँखों में ढेर सारे ख्वाब थे । सुनहरे सपनीले ख्वाब । रंग बिरंगे खिलखिलाते फूलों की तरह, आसमान में जगमगाते सितारों की तरह । हर ख्वाब अपने आप में बेशकीमती था । बिल्कुल सौ फ़ीसदी अनमोल । मैं उसके ख़्वाबों को देखकर, सुनकर मुस्कुरा कर रह जाता था । इतना मासूम भी भला कोई होता है । जानता हूँ वो इस दुनिया का हिस्सा होते हुए भी दुनिया से अलग थी । उसका भोलापन, उसकी मासूमियत और उसकी सादगी सौ प्रतिशत शुद्धता लिये हुए थे । मुझे उससे प्यार हो गया था । "आई एम इन लव" जब मैंने ये शब्द उससे कहे थे तो उसने पास आकर के मेरे गालों को चूमा था और हौले से कान में कहा था "मी टू" । मैंने उसे ऐसे देखा था जैसे खुली आँखों से कोई ख्वाब देखा हो । वो मुझे देखकर मुस्कुरा गयी थी और दूजे ही पल मैं । मैंने उसे गले लगा लिया था । उसका और मेरा प्यार के इजहार का तरीका भी कितना अलग था, नहीं हमारा । मेघा के साथ सब कुछ हमारा सा ही लगता था ।
एक बार उसने भोलेपन से कहा था "तुम शादी करना चाहते हो ?" । मैंने कहा "हाँ" । वो मुस्कुराकर बोली थी "लेकिन मुझे ये प्रेमी पसंद है होने वाला पति ना जाने कैसा हो ?" । मैंने तब मुस्कुराते हुए कहा था "लेकिन तुम्हें बच्चे भी तो पसंद हैं ।" वो मासूमियत से चहक उठी थी । मैंने कहा "चलो ऐसा करते हैं तुम्हारे होने वाले बच्चों की खातिर तुम्हारा पति बन जाऊँगा और तुम्हारी खातिर तुम्हारा प्रेमी रहूँगा ।" तब वो सोचते हुए किसी दार्शनिक की तरह बोली थी "नोट अ बैड आईडिया ।"
एक रोज़ बड़े ही भोलेपन से बोली थी "मुझे तुम्हारे मम्मी-पापा से मिलना है ।" मैंने कहा "आज" । वो बोली "आज नहीं, अभी चलो " । मैं बोला "आर यू मैड" । वो गुमसुम हो गयी । मैं जानता था कि उसने जो एक बार ठान लिया सो ठान लिया । मैंने कहा अच्छा ठीक है चलो । उस रोज़ मुझे उसे अपने घर ले जाते हुए एक पल के लिये भी डर नहीं लगा । एक पल के लिये भी मैंने नहीं सोचा कि मम्मी-पापा क्या सोचेंगे । आधे घंटे में हम दोनों घर पर थे । मम्मी हम दोनों को बैठाकर रसोई में चली गयीं थीं । मैं पीछे से मम्मी के पास गया । "कौन है ये ?" माँ का ये सवाल होगा ऐसा मैं सोच रहा था । लेकिन माँ ने ऐसा कुछ नहीं पूंछा । हम दोनों जब वापस लौटे तो देखा कि वो पापा के साथ अखबार में आई पहेली सुलझा रही है । माँ ने चाय नाश्ता टेबल पर रखा तो सब लोग आमने सामने बैठ गये । माँ ने पूँछा "खाना बनाना आता है ?" उसने ना में सिर हिलाया और बोली "मैं जानती हूँ कि आप मुझे सिखा देंगी, क्योंकि आप माँ हो ना ।" उस पल माँ के आँसू छलक आये थे और उसे गले से लगा लिया था । पापा ने ख़ुशी से अखबार खोल लिया था । उनके ख़ुशी की पहचान के अपने तरीके थे । उस रोज़ लगा कि अब हमारी कम्प्लीट फैमिली है । कोई भी उसके जादू से बच नहीं पाता था ।
असली परीक्षा तो अभी बाकी थी । मेघा के परिवार वालों से मेरा मिलना अभी बाकी था । दो रोज़ बाद मेघा बोली कि उसके मम्मी-पापा मुझसे मिलना चाहते हैं । इस बात पर ना जाने क्यों मेरा गला सूख गया । मेघा के पिता आर्मी में थे और मेरे मन में उनके प्रति एक अलग ही नजरिया था । डरते डरते मैं उस रोज़ मेघा के घर गया । उसकी माँ ने दरवाजा खोला । उसके पापा ने मेरे बैठते ही अपनी कलाई पर घड़ी को देखा । समय के पाबन्द हो बरखुरदार । एक जोरदार आवाज़ सुनाई दी थी जो जाहिर है उसके पिता की ही थी । उस वक़्त में टेबल पर रखी हुई मैगज़ीन को देख रहा था । फिर उनके सवालों का दौर शुरू हुआ और मेरे जवाबों का । और उनका आखिरी का सवाल "तो क्या तुम्हें लगता है कि तुम मेघा से प्यार करते हो और उससे शादी के लायक हो ?" । तब मैंने उनकी आँखों में देखते हुए बोला था "जी" । तभी अन्दर से रसोई में से माँ और मेघा हँसते हुए आ गयी । मेघा की माँ ने मुझे पास आकर खड़े खड़े ही अपने आँचल में छुपा लिया । देखो तो कितना डरा दिया बच्चे को । उस पल मेघा के पिताजी हँसे थे । उनके पूरे बत्तीस दाँत दिखाई दिये थे । दोनों लोग हँसते हुए बोले थे कि यह सब मेघा की शैतानी है । इसी ने कहा था कि जोरदार इंटरव्यू लेना । मेघा ने मुझे देखते हुए आँखें नचाई थीं और मैं सादगी से मुस्कुरा कर रह गया था ।
हमारे बीच सब कुछ परफेक्ट था । परफेक्ट फैमिली एंड ट्रू लव । मुझे अब भी याद करते हुए हँसी आ जाती है कि कैसे अपने दरवाजे पर बारात के पहुँचने पर वो आ पहुँची थी और बोली थी कि "पहले नाच कर दिखाओ तब अन्दर आने दूंगी" । शादी होने पर माँ-बहू ना जाने दिन रात क्या क्या गप्पे मारती रहती थीं । जब मैं कहता कि "मोहतरमा हमारा भी कुछ ख़याल करोगी" तो पास आकर गाल को चूमते हुए चली जाती और कहती "अभी के लिये इतना ही" । आइ वाज इन लव, डीपली । डे बाय डे । नो, आई एम स्टिल इन लव ।
लेकिन वो चली गयी हमेशा के लिये । उसकी खातिर जिसे वो हम सबसे ज्यादा चाहती थी और जिसके आने की ख़ुशी में वो हर पल चहकती रहती थी । उसके होने के बाद वो हम सबको छोड़कर चली गयी । उसके स्पर्श से ही हमने उसका नाम स्पर्श रखा । वो यही चाहती थी ।
कई बरस बीत गये लेकिन सब कुछ अब भी जैसे वैसा ही लगता है । आज फिर से वही होने को आया है । आज सोचता हूँ कि स्पर्श की माँ वाला सवाल मुझे ही पूँछना होगा "खाना बनाना आता है ?" । शायद वो कहीं से हमें देख रही हो और इस सवाल पर हँस पड़े .....