दिल आज भी तुम्हारी मोहब्बत की बारिश में भीगा हुआ है मेरी जाना.

>> 07 July 2015

वो यही कोई रूमानियत से लबालब बारिशों भरी दोपहर थी. यहाँ वहाँ अपने अपने बस्तों को अपने नाज़ुक कन्धों पर लादे बच्चे यहाँ वहां भर आये पानी पर छपा छप खेलने में उत्साहित से दिख जाते. पेड़ धुले धुले गर्मी से राहत की साँस भरते मुस्कुराते हुए किनारों पर खड़े हर आने जाने वालों पर चिढातेे से पानी की बौछारें फैंक दिया करते.
कहीं कोई जल्दी नज़र नहीं आती थी. यूँ लगता कि अभी अभी जो सुबह बीती है वो भी कह रही हो कि मुझे भी अपनी इस ठंडक में शामिल कर लो.
सवारियां ऑटो में लदी हुईं न जाने कहाँ से कहाँ को जाने में बेचैनी दिखा रहीं थीं. उसी किसी खूबसूरत क्षणों में वो भीगता रिक्शा न जाने कहाँ से कहीं को न जाने के लिए चलते चला जा रहा था. तब मैंने ही हाथ दिया था शायद उसको. हाँ मैंने ही दिया होगा. तब तुमने ही कहा था कि थोडा रुकते हैं. लेकिन तुम्हें बारिशें कितनी तो भाती हैं ये खबर थी मुझको.
बारिशों ने तब उस मौसम की पहली आमद दी थी. बिना छतरी वाला रिक्शा था और हम भीग जाना चाहते थे. तब तुमने कहा था कि कोई क्या कहेगा कि देखो तो भीग जाने के लिए रिक्शे पर बैठे हैं. और मैं मुस्कुराया भर था.
बारिश की नन्हीं नन्हीं बूँदें हमारे चेहरों को आ हमें शायद ये बता रही थीं कि अभी हम जीना भूले नहीं हैं. उन्हीं किन्हीं क्षणों में तुम्हारे गाल को चूमा था मैंने. और तुम शरमा कर रह गयीं थीं. तब तुमने कहा था कि किसी की भी फ़िक्र नहीं करते. और मैंने कहा था की सामने फिक्र करने वाला मुझे कोई आता दिखाई नहीं पड़ता. तब तुम मुस्कुराई थीं और हँसते हुए कहा था कि और पीछे. मैं पीछे आती स्कूल के बच्चों की साइकिल की कतार को देख कितना हँसा था.
उस भीगते दिन में मैंने कहा था कि मैं इस शहर में यूँ ही बेपरवाह अपनी सारी ज़िन्दगी तुम्हारे साथ इसी तरह रिक्शे पर बैठ घूमना चाहता हूँ. उस रोज़ उस बारिश ने भी उस खुदा से हमारे लिए दुआ माँगी होगी. और शायद उन रिक्शे वाली भैया ने कहा हो आमीन.
दिल आज भी तुम्हारी मोहब्बत की बारिश में भीगा हुआ है मेरी जाना.

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