देर रात की डायरी

>> 12 August 2015

अपनी बढ़ती उम्र के कच्चे अनुभवों में लिखी अपनी तमाम कहानियां अब मुझे मुँह चिढ़ाती सी महसूस होती हैं. उनका कच्चापन और अधूरापन मुझे बार बार सबक देता है, अब में देखता हूँ तो पाता हूँ कि उनमें से ज्यादातर तो प्रेमकहानियों को लिखने की मेरी असफल कोशिशें थीं.  सच कहूँ तो बड़ी कोफ़्त होती है.

फिर यह सोचकर दिल को तसल्ली दे समझाता हूँ कि शायद वे मेरे रचनात्मक विकास की ही कड़ी थीं. कि कोई भी कहानीकार अपने पहले ही प्रयास में एक पकी हुई कहानी कहाँ लिख पाता होगा.

बाद के दिनों में जाना कि पढ़ना तो आवश्यक है ही साथ ही साथ किस को पढ़ना है और किसको नहीं यह चुनाव भी बेहद महत्वपूर्ण है. यह हमारे विकास में नई समझ, नई रचना प्रक्रिया को जन्म देता है.

फिर हमारी उम्र पर चढ़े अनुभव हमें हर रोज़ ही एक नया संसार, नए पात्र, संवाद, कथा शिल्प, कथा कौशल देते हैं. तब कहीं जाकर हमारी रचनात्मकता में मजबूती आती है.

और शायद अब बाद की लिखी जाने वाली कहानियाँ कच्ची नहीं होंगीं और यदि उनमें से कुछ प्रेम कहानियां होती भी हैं तो वे सच्चाई के धरातल और जीवन से कदम ताल मिलाती दिखेंगीं.

2 comments:

Neeraj Rohilla 12 August 2015 at 20:08  

Wow, I used to read you regularly few years back. Good to see that you are active again.

Best wishes,
Neeraj

अनिल कान्त 20 January 2019 at 21:13  

जानकर अच्छा लगा नीरज जी

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